एक पत्रकार पुरे दिन कितना संघर्ष करता है। मीडिया संस्थान उसे उसका वाजिब मेहनताना दे नही पा रहा। ऊपर से एक और फोकट की नोकरी whats app के आने से शुरू हो गई है। जिसे देखो ग्रुप बनाके whats app पे न्यूज़ लेने को लालायित है। बहुत से लोग स्वेच्छा से न्यूज़ आदान प्रदान कर रहे है। जो ठीक भी है। पर बहुतो ने तो बहुतो पे प्रेसर मार दिया है न्यूज़ के लिए। जिसमे बहुसंख्यक इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले है। जिन्हें खबर के पुष्टी की कम ब्रेकिंग की ज्यादा जल्दी रहती है। बात whats app नोकरी की हो रही थी। कुछ ऐसे तत्व है जो खबरों पे तो कम रहते है पर खबर उन्हें पहले चाहिए। इसके लिये जैसे झौआ भर चैनल व अख़बार आ गए है वैसे ही whats app पे ग्रुप खुल गए है। जिसमे अपनी दुकानदारी चलाने के लिए लोग दुसरो के दुकान से संपर्क साधे हुवे है। ऐसे में अपनी दुकानदारी चलाना मुश्किल हो गया है। ........मगरुआ तू मत लिहे ई whats app वाला फोन नहीं तहु के चलाना पढ़े दूसरे क दुकान।
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