गुस्ताखी छाप का भाग 2 ये की मै कुए का मेंढक । तो बताऊ की उन्ही पत्रकार महोदय ने मुझे कहा की तुम अच्छा लिखते हो, रवीश कुमार को फालो करते हो पर उनकी तरह खबर नही बनाते। तुम कुए के मेंढक हो। यहा भी मै सुन ही रहा था, कह नही सकता था गुस्ताखी जो हो जाती। तो मै जो उन्हें नही कह सका वो बता रहा की उनके हिसाब से मै कुए का मेढक ही सही पर कुए की गहराई को भी देखे। दायरा कम जरुर है, पर सोच की गहराई भी है। रही बात दायरे से निकलने की तो कुए से पानी काढ़ते समय कभी-कभी आशावादी व बड़े दायरे में जाने वाले मेंढक बाल्टी में आ ही जाते है। मुझे भी इंतजार है सहारे वाले बाल्टी की जो मेरी कुए की गहराई तक पहुंच सके। और रही बात रवीश की तरह बनने की तो वो कोई नही बन सकता। कुछ मैंने उनसे सीखा है और कुछ मेरे अपने भी तरीके है.......वो आप मेरे फेसबुक पोस्ट और देवपंती ब्लाग पर पढ़ सकते है। काश महोदय ने मेरे फेसबुक पोस्ट और ब्लॉग को भी पढ़ा होता अखबारी खबरों को छोड़ कर......अख़बारो में अब वो साहस कहा जो छाप सके असल जज्बातो को, हम तो कुए के मेढक ही सही जो समझते है हर बातो को ।
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