Friday 13 January 2017

इन भक्तो से भगवान बचाये, ये तो भगवान से भी आगे है


मुझे लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मादी से भी अगर कोई बात करते समय
उनकी किसी निति या बात का लाजिकल उत्तर देकर उसे गलत बताये तो उससे लडेंगे नहीं। पर इन भक्‍तो से भगवान बचाये। एक कार्यक्रम में नोटबंदी पर चर्चा होने लगी। उसमें भक्त ने कहा कि जनता मोदी जी का समर्थन कर रही है इसलिए सडक पर नहीं आयी। इस पर मैने कह दिया कि अनता को उनसे आस है। इसलिए सडक पर नहीं आयी। पर जब आस खत्म होगी। जो आस है वो पूरा नहीं होगा तो जनता सडक पर न आकर तख्त पलट देगी। इस पर भक्त ने जोड दिया कि अगले पंचवर्षीय में हटा देगी। 60 साल भुल गये। हटा देगी तो क्या होगा।15 साल तक तो र हेंगे ही। शायद ये 60 साल के दौरान लालबहादुर शास्त्री के कार्यकाल को भूल जाते है। इस दौरान चर्चा में एक पत्रकार जो भक्त दल से जुडे है। उनसे कह दिया कि वे पत्रकार है तो दोनों बातो को रखना चाहिए। अच्छे और बूरे दोनों। पर दल से जुडे है तो कैसे रख सकेंगे। पर इस उन्होंने कहा कि आप वोट देते है। तो आप भी तो किसी दल से जुडे हो। ये क्या लाजिक है। मेन स्ट्रीम पत्रकारिता और मेन स्ट्रीम राजनीति एक साथ कैसे हो सकती है।राजनीति करना है तो शलभमणि त्रिपाठी, आशुतोष आदि फला फला बन जा‍यिए।लिखना शौक है तो स्वतंत्र होकर लिखिए। पर एक दल की राजनीति करते हुए एकअखबार या चैनल की पत्रकारिता कैसे कर सकते हो। वैसे कर सकते हो जी न्यूज व सुभाष चंद्रा तो कर ही रहे है और भी बहुत से चैनल व पत्रकार कर ही रहे है। ऐसे लोगों को समाज समझ्‍ने लगा है। आपको भी समझ् ही रहे होंगे। आप इनसे इतर थोडे होंगे। मोदी जी के सादगी की चर्चा भी भक्त खुब करते है। पर उनसे अगर उनकी पार्टी के दूसरे नेताओं पर चर्चा करिये तो अलग लाजिक देंगे। नोटबंदी में गडकरी जी के घर जो शादी हुयी क्या तो कम बजट में नहीं हो सकती थी। क्या आदर्श प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था। इस पर वो उन्‍हें बिजनेश मैन बना देते हैं । अब मैन नहीं कहूंगा कि उनकी बेनामी कंपनियों का भी मामला प्रकाश में आया था। क्यों कि भक्त कहेंगे साबित कुछ नहीं हुआ। वैसे भी साबित तो किसी नेता का कुछ नहीं होता। साबित होता तो बहुत से नेता जेल में होते। नोटबंदी के फैसले को सही कहते हुए अगर आपने उसमें किसी नियम तक को गलत कह दिया तो भक्त आप पर दस सवाल दाग देंगे। चर्चा में एक भक्त ने मुझ पर दाग ही दिया कि आप लाइन में लगे,आपके पास अाधार है, आपके पास पैन कार्ड है, आप मेहनत का पैसा जमा किये हो। भक्त को तो जवाब दे ही दिया । पर अगर उन भक्त से पूछ लेता आप जो कमाये उसका हिसाब है। कहां से कमाये हो तो सब भक्ति निकल जाती। पर कुछ सम्मान करना था वहां, इसलिए नहीं पूछा। इन्ही भ्‍क्त से कहा कि अन्ना का लोकपाल क्या हुआ पूछा तो कहने लगे कैसा लोकपाल चाहिए। मैने कहा जो सत्ता में आने से पहले चाहते थे तो कहने लगे नोटबंदी वहीं है। वाह क्या लाजिक है। इसलिए कहता हूं इन अंध भक्तो से भगवान बचाये।