मै सुन रहा था कोई एक पत्रकार सज्जन समाचार लिखने का तरीका बताते हुए कह रहे थे की खबर ये बनाइए की जैसे श्रम विभाग में मजदुर की न्यूनतम पारिश्रमिक 200 रूपये प्रतिदिन होती है और सरकार जो मनरेगा योजना चला रही है, उसमे मजदूरी 150 के लगभग है। सरकार अपने ही मानको के तहत ही योजनाओ का संचालन नही कर रही है। ये तो हर के पत्रकार के लिए खबर है। पर मेरी आदत लिक से हट कर सोचने की है तो सोचा पत्रकार महोदय से कहू की महाराज वो छोडिये अपने न्यूज़ में पत्रकारों को डालिए न्यूज़ और जबरदस्त बनेगी क्यूंकि बहुत पत्रकार है जिनकी प्रतिदिन की मजदूरी उस मनरेगा वाले मजदुर से भी बद्तर है। पर पत्रकारिता के पर्वत दिगार ये कहा सोचते है, और मै कुए का मेढक मेरी क्या औकात जो उन्हें कह सकू कुछ। मै कुए का मेढक क्यों ये अगले गुस्ताखी छाप में।
डिस्परेट- दिमाग आउट ऑफ़ कंट्रोल इन माई पेशा पत्रकारिता ।
डिस्परेट- दिमाग आउट ऑफ़ कंट्रोल इन माई पेशा पत्रकारिता ।
No comments:
Post a Comment