Monday 19 January 2015

वो है बेहतरीन (गेस्ट कालम)

ब्लाग को हमेशा अपडेट करना भी इस भागमभाग के समय में मुश्किल लगा तो सोचा.......जब अन्य लोग भी जुड़े है तो............स्थान उनका भी होना चाहिए इस पर .......उनके लिए ही शुरू किया मैने गेस्ट कालम........जिसकी शुरूआत पहले भी हुई है...........पर वो अनौपचारिक था............अब औपचारिक रूप से सबका स्वागत है.............इस कड़ी में आयी पहली कविता मेरी मित्र स्मृति बरनवाल का है.........वो लिखती रहती है.........उनसे आग्रह किया तो शुरूआत उन्होंने..........हमारे मित्र मण्डली की टीम महादेव टीम को समर्पित किया ये कविता................. वो है बेहतरीन: साभार-स्मृति बरनवाल (गेस्ट कालम)







दोस्ती पर कुछ लिखना था मुझे,
ढुढ़ रही थी कुछ जोड़ना थे मुझे।
मौसमो में झांका, यादो को टटोला,
एहसासो से भी पुछा,
फिर जब कुछ ना मिला तो
दिल से की गुफ्तगु।
क्या होती है दोस्ती ?
वहम बन जाती है मोहब्बत की कभी,
कभी लगती सबसे अनोखी।
कई साल गुजरे,
पर मैं  और मेरी दोस्ती वैसी की वैसी।
हां कुछ पल आये कठिन,
और कुछ खुशी के भी,
पर दोस्ती रही वही सम्भली हुई।
कोई दोस्त उन जैसा ना मिला,
ना वैसी दोस्ती हुई कभी।
कुछ लिखुं और क्या ज्यादा,
जब ये उलझी अनकही,
वो है बेहतरीन....बेहतरीन.....बेहतरीन।

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