बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के राजीव गांधी दक्षिणी परिसर में 2009-10 में पोस्ट ग्रेजूएट डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई के दौरान उन दिनो के सफर को एक सुत्र में पिरोने को लिखी गयी कविता...इसके लिए विशेष आभार मित्र आशीष जायसवाल को......
बहुत याद आ रहा समा वो सुहाना,
कोई ये ना समझा, कोई ये ना जाना।
अगस्त का पहला सप्ताह, हुआ जब एडमिशन,
पहले बनी मेरिट हुआ फिर सलेक्शन।
हुई फिर दोस्तो से कैंपस आने की बाते,
यहीं से शुरू होती है, परिसर की यादे।
यहीं से शुरू होती है, परिसर की यादे।
पीजीडी इन जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन है कोर्स का नाम बता दे,
कोर्स की पहली झलक आओ तुमको दिखा दे।
नवीर सर और साधना मैम है टिचर्स हमारे,
शुरू हुआ कारवां जिनके सहारे ।
बीस हुए थे एडमिशन, उन्नीस आते थे रोज,
सभी ने कहा चल बीसवे को खोज।
एक दिन जब क्लास में आयुषी आई,
देव ने कहा यही बीसवी है भाई ।
आदमी ने काटा कुत्ते को कैसे ?
शुरू हुआ कारवां जिनके सहारे ।
बीस हुए थे एडमिशन, उन्नीस आते थे रोज,
सभी ने कहा चल बीसवे को खोज।
एक दिन जब क्लास में आयुषी आई,
देव ने कहा यही बीसवी है भाई ।
आदमी ने काटा कुत्ते को कैसे ?
इसकी बनेगी खबर बच्चो ऐसे।
ये थी पहली बात जो सर ने बताई,
न्यूज की परिभाषा थी हमको सिखाई ।
मैडम ने जो हमें पहली क्लास में पढ़ाया,
वो सब्जेक्ट हमारा जनसंचार कहलाया।
कान्सेप्ट, माडल्स की शुरू हुई कहानी,
पढ़ी फिर हमने फिल्म, दुरदर्शन और आकाशवाणी।
पहली प्रजेन्टेशन की पहली दकियानुसी,
वो विषय की गहराई, वो शब्दो की कन्जुसी।
ये गाने-तराने वो कैंटीन की क्लास,
प्राब्लम-साल्यूशन की पुरानी बकवास।
फिर रोज क्लास में जलेबियों का आना,
लेट होने पर हमेशा एक नया बहाना।
वो चाय की चुस्की वो "उड़ान" की मीटिंग,
वो एजेंडे को भूलकर फिचर की "सेटिंग" ।
फिर सर ने हमें सोशल कैपिटल और पब्लिक रिलेशन पढ़ाया,
पब्लिसिटी और प्रोपेगैंडा तब हमको समझ में आया।
पेपर और प्रोजेक्ट के साथ कोर्स जम जायेगा,
अगस्त का हमारा सफर अप्रैल में थम जायेगा।
बैठेंगे अकेले तन्हाई में जब भी,
सोचेंगे ऐसी बातो को तब भी।
बहुत याद आयेगा समा वो सुहाना,
कोई ये ना समझा कोई ये ना जाना।
ये थी पहली बात जो सर ने बताई,
न्यूज की परिभाषा थी हमको सिखाई ।
मैडम ने जो हमें पहली क्लास में पढ़ाया,
वो सब्जेक्ट हमारा जनसंचार कहलाया।
कान्सेप्ट, माडल्स की शुरू हुई कहानी,
पढ़ी फिर हमने फिल्म, दुरदर्शन और आकाशवाणी।
पहली प्रजेन्टेशन की पहली दकियानुसी,
वो विषय की गहराई, वो शब्दो की कन्जुसी।
ये गाने-तराने वो कैंटीन की क्लास,
प्राब्लम-साल्यूशन की पुरानी बकवास।
फिर रोज क्लास में जलेबियों का आना,
लेट होने पर हमेशा एक नया बहाना।
वो चाय की चुस्की वो "उड़ान" की मीटिंग,
वो एजेंडे को भूलकर फिचर की "सेटिंग" ।
फिर सर ने हमें सोशल कैपिटल और पब्लिक रिलेशन पढ़ाया,
पब्लिसिटी और प्रोपेगैंडा तब हमको समझ में आया।
पेपर और प्रोजेक्ट के साथ कोर्स जम जायेगा,
अगस्त का हमारा सफर अप्रैल में थम जायेगा।
बैठेंगे अकेले तन्हाई में जब भी,
सोचेंगे ऐसी बातो को तब भी।
बहुत याद आयेगा समा वो सुहाना,
कोई ये ना समझा कोई ये ना जाना।
Bhut Khub Yaado ko Sbdo me Piroya hai...............apne Sath Mujhe Yaado ka Sunder Jhrokh Atit se dikhaya hai..................Thanx And Best Wishes
ReplyDeleteCollege memories has always a golden memories. We can't remove and forget it.
ReplyDeleteIt's a really unforgettable for everyone..