बचपन में दादी, नानी से कहानी सभी ने सुनी होगी। कुछ दादी-नानी से नही तो किसी अन्य से तो सूनी ही होगी। दरअसल दादी-नानी पात्र कहानियां सुनाने की ब्रांड एम्बेसडर है, तो इन्हीं का जिक्र आता है। बचपन में मैने भी सुनी है। पर 25 के उम्र में कम ही समय मिलता होगा कि रात के समय बिस्तर में हो....लाइट कटी हो......मगरूआ के साथ पूरे घर के लोग टीवी पर अपने-अपने प्रोग्राम से इंटरटेन होने का इंतजार कर रहे हो। ऐसे में कोई आपको किस्से-कहानियों को सुनाकर न सिर्फ आपने बचपन की याद दिला देता है। बल्कि जिस वर्तमान में है, उसे भी यादगार बना देता है। कहानी सच्ची हो तो उसे सुनने का रोमांच बढ़ जाता है। एक ठिकाना मुझे मिला, जहां पर मेरी बुकिंग तो पहले ही हो गयी थी, बस मैं ही टिकट नहीं कटा पा रहा था। टिकट कटा भी तो ऐसे जैसे किसी फिल्म का डायलाग है ना कि किसी को सिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे मिलाने में लग जाती है। ऐसा ही हुआ नये साल के प्रथम दिन। आया तो था वाराणसी अपने महादेव टीम के साथ नया साल मनाने। फिर पानी ने पीके दिखाया और ये पानी का बरसना वो डायलाग वाला कायनात ही था कि पीके देखने के बाद उस ठौर-ठिकाने पर पहुंचने का नसीब हुआ। जिसका टिकट एटैंडम ही कट गया। फिर मिल बैठे तीन यार जाने को हुए उस ठिकाने को तैयार। जिसमें से एक तो थी उसी ठिकाने की सरदार, दुसरा था अपना चार साल बाद मिलने वाला यार। ठिकाने पहुंचने तक कायनात भी था अपने साथ। पहुंचे जब हम ठिकाने को तो क्या नजारा था। ठंड के साथ बारिश की बुंदो ने उसे सवांरा था, लाईट हुई गुल थी, ये भी कायनात की ही किया कराया था। और वहां पर माता-पिता और बहन जैसा कोई इंतजार में टकटकी लगाया था। बहुत दिनो बाद उनसे मिलने का सौभाग्य आज आया था। इसके बाद पीके देखकर आये थे तो कुछ देर पकपकाये। अंत में खा-पीकर कहानी सुनने को आये। कहानी सुनने के पहले हमारे पिता तुल्य अंकल रमेश चन्द्र सिंन्हा जी ने बताया अपने कहानी संग्रह के बारे में। बताया कि कह तो दूं बहुत पर लिखने में है परेशानी। उससे पहले में आपको एक और बात बता दूं उनकी बिटिया ने कहा था कि बाउ बहुत पकायेंगे, अपनी टांग अड़ाओगे तो अपने ही सुर में गायेंगे। अंकल के पास सच्ची कहानियों का था अच्चा कलेक्शन, पर बिटिया ने पहले ही सुन रखी थी तो बीच-बीच में करती रही आब्जेक्शन कि ये भुल गये, वो छुट गया। इस बीच दो कहानियों को अंकल ने सुनाया। जिसे बचपन में सुनता तो दिल होता घबराया.....अब था 25 का तो लगा रहा था दिमाग की छत्तीश। अंकल की कहानी थी भुत और परी की। जिसे मैं आज के सन्दर्भ में कहुंगा पाजिटिव व निगेटिव शक्तियां। ये भी एक संयोग ही था कि दिन में पीके देख के आया था। जिसने आडम्बरो से पर्दा उठाया था। रात में भुतियां कहानी सुना.....जिसमें उनका भी अपना स्थान बताया था। एक कहानी में अंकल ने बताया कि जब वो इलाहाबाद में रहते थे एक भुत उनके शरीर पर कब्जा कर लिया था। बताया कि वो रोज अपने मित्र से मिलने जाते या अन्य किसी काम से जाते तो वापस आते समय घर के पास स्थित एक पेड़ के पास उनका मित्र उनसे वहीं मिल जाता। बाद में पता चला कि पेड़ के पास तो उनका मित्र उनसे मिला ही नहीं। इस बीच ये भी बताया कि नल के पास जाते तो उसमें हाथ लगाते ही पानी आना बंद हो जाता। इस बात पर मुझे वर्तमान याद आया कि कही उसी नल से प्रेरित होकर आज का नल तो नहीं बना....जो बड़े होटलो में लगा होता है। जिसमें हाथ लगाते ही पानी आता है पर हाथ हटाते ही चला जाता है। उस नल के विलोम जैसा। फिर बताया कि कैसे ताबिज आदि पहने फिर जाकर सब ठीक हुआ। ये पुछने पर कि क्या वो ताबिज अभी भी पहने है तो बताया कि कभी नहाते समय गुम हो गया। लेकिन फिर कभी उन्हें कुछ प्रतीत नहीं हुआ। दुसरी कहानी का रोमांच ज्यादा था। जिसमें परी प्यारी न होकर परेताई हो गयी थी। अंकल ने बताया कि उनके पिता के मामा जो गाजीपुर में रहते थे। उस जमाने में उनके ठाठ थे। वे बग्घी से चलते थे। इसी बीच अंकल ने पढ़ाई से ब्रेकअप शब्द का जिक्र किया.....तो मेरे मन में आया कि ब्रेकअप का दौर तब भी था.....बस अब उसका साम्राज्य कई क्षेत्रो में फैल गया है। बताया कि उनके पिता के मामा एक बार बग्घी से घर जा रहे थे तो उन्हें एक परी दिखी थी। कुछ दिनो बाद उनकी शादी हो गया। शादी के कुछ महिने बाद वो बीमार हो गये। काफी इलाज के बाद वे ठीक नहीं हुए। डाक्टरो ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पर उनके पिता ने उन्हें जलाया नहीं। घर के पास ही स्थित कुंए के पास उनके जरूरी सामान के साथ सोफा, बेड, किताबे इत्यादि वस्तुओं के साथ उन्हें वहां दफनाया गया। कुछ दिनो के बाद उनके साथ कब्र में डाली गयी चीजे कुंए में तैरती दिखी। तो फिर कब्र को खुलवाया गया। कब्र को देख सभी आश्चर्यचकित रह गये। वहां से शरीर गायब था। फिर बनारस से प्रकाण्ड ब्राहमण बुलाये गये। फिर कई दिनो तक पूजा -हवन इत्यादि हुआ। इसके बाद ब्राहमणो ने बताया कि वो किसी भी रिश्तेदार को एक-एक कर तीन बार दिखाई देगे। इस बीच उन्हें देखने वाला उनका हाथ पकड़ लेगा तो वो यही रूक जायेेंगे वरना हमेशा के लिए गये। उस ब्राहमण के अनुसार वो तीन बार दिखे। सबसे पहले एक रिश्तेदार को दिखे तो वो पहले बेहोश हो गये, फिर जग कर खोजा तो गायब। इसके बाद वो अपने पिता को दिखे तो वो भी मुर्छित हो गये। फिर अंतिम बाद वो अपने पत्नी को घर में स्थित एक पेड़ पर बैठे दिखे.....फिर वही हुआ उन्हें देखने के बाद वो भी अचेतावस्था में चली गयी। फिर वो कभी नहीं आये। अब इन कहानियों की पीके से तुलना करे तो करे तो लगता है कि वो भी सही है और ये भी सही है। कुछ तो लाजिक होगा जो दोनो अपने स्थान पर सही है। तो मेरे हिसाब से यही लगा कि भुत-प्रेत, दानव या देव, ईश्वर, भगवान हो या न हो पर इस दुनिया में पाजिटिव व निगेटिव चीजे हमारे बीच है। वह हमारे बीच जिस रूप में दिख जाय उसे वह नाम दे देते है। तब के निगेटिव चीजो को हटाने के लिए हमारे उस समय के पाजिटीव वाले संत, बाबा, फकीर, पीर दस चेले उन्ही के दृढ़शक्तियों को भुनाने का प्रयास करते हुए अपनी दुकानदारी चला रहे है।
Saturday, 10 January 2015
कायनात से कहानी तक
बचपन में दादी, नानी से कहानी सभी ने सुनी होगी। कुछ दादी-नानी से नही तो किसी अन्य से तो सूनी ही होगी। दरअसल दादी-नानी पात्र कहानियां सुनाने की ब्रांड एम्बेसडर है, तो इन्हीं का जिक्र आता है। बचपन में मैने भी सुनी है। पर 25 के उम्र में कम ही समय मिलता होगा कि रात के समय बिस्तर में हो....लाइट कटी हो......मगरूआ के साथ पूरे घर के लोग टीवी पर अपने-अपने प्रोग्राम से इंटरटेन होने का इंतजार कर रहे हो। ऐसे में कोई आपको किस्से-कहानियों को सुनाकर न सिर्फ आपने बचपन की याद दिला देता है। बल्कि जिस वर्तमान में है, उसे भी यादगार बना देता है। कहानी सच्ची हो तो उसे सुनने का रोमांच बढ़ जाता है। एक ठिकाना मुझे मिला, जहां पर मेरी बुकिंग तो पहले ही हो गयी थी, बस मैं ही टिकट नहीं कटा पा रहा था। टिकट कटा भी तो ऐसे जैसे किसी फिल्म का डायलाग है ना कि किसी को सिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे मिलाने में लग जाती है। ऐसा ही हुआ नये साल के प्रथम दिन। आया तो था वाराणसी अपने महादेव टीम के साथ नया साल मनाने। फिर पानी ने पीके दिखाया और ये पानी का बरसना वो डायलाग वाला कायनात ही था कि पीके देखने के बाद उस ठौर-ठिकाने पर पहुंचने का नसीब हुआ। जिसका टिकट एटैंडम ही कट गया। फिर मिल बैठे तीन यार जाने को हुए उस ठिकाने को तैयार। जिसमें से एक तो थी उसी ठिकाने की सरदार, दुसरा था अपना चार साल बाद मिलने वाला यार। ठिकाने पहुंचने तक कायनात भी था अपने साथ। पहुंचे जब हम ठिकाने को तो क्या नजारा था। ठंड के साथ बारिश की बुंदो ने उसे सवांरा था, लाईट हुई गुल थी, ये भी कायनात की ही किया कराया था। और वहां पर माता-पिता और बहन जैसा कोई इंतजार में टकटकी लगाया था। बहुत दिनो बाद उनसे मिलने का सौभाग्य आज आया था। इसके बाद पीके देखकर आये थे तो कुछ देर पकपकाये। अंत में खा-पीकर कहानी सुनने को आये। कहानी सुनने के पहले हमारे पिता तुल्य अंकल रमेश चन्द्र सिंन्हा जी ने बताया अपने कहानी संग्रह के बारे में। बताया कि कह तो दूं बहुत पर लिखने में है परेशानी। उससे पहले में आपको एक और बात बता दूं उनकी बिटिया ने कहा था कि बाउ बहुत पकायेंगे, अपनी टांग अड़ाओगे तो अपने ही सुर में गायेंगे। अंकल के पास सच्ची कहानियों का था अच्चा कलेक्शन, पर बिटिया ने पहले ही सुन रखी थी तो बीच-बीच में करती रही आब्जेक्शन कि ये भुल गये, वो छुट गया। इस बीच दो कहानियों को अंकल ने सुनाया। जिसे बचपन में सुनता तो दिल होता घबराया.....अब था 25 का तो लगा रहा था दिमाग की छत्तीश। अंकल की कहानी थी भुत और परी की। जिसे मैं आज के सन्दर्भ में कहुंगा पाजिटिव व निगेटिव शक्तियां। ये भी एक संयोग ही था कि दिन में पीके देख के आया था। जिसने आडम्बरो से पर्दा उठाया था। रात में भुतियां कहानी सुना.....जिसमें उनका भी अपना स्थान बताया था। एक कहानी में अंकल ने बताया कि जब वो इलाहाबाद में रहते थे एक भुत उनके शरीर पर कब्जा कर लिया था। बताया कि वो रोज अपने मित्र से मिलने जाते या अन्य किसी काम से जाते तो वापस आते समय घर के पास स्थित एक पेड़ के पास उनका मित्र उनसे वहीं मिल जाता। बाद में पता चला कि पेड़ के पास तो उनका मित्र उनसे मिला ही नहीं। इस बीच ये भी बताया कि नल के पास जाते तो उसमें हाथ लगाते ही पानी आना बंद हो जाता। इस बात पर मुझे वर्तमान याद आया कि कही उसी नल से प्रेरित होकर आज का नल तो नहीं बना....जो बड़े होटलो में लगा होता है। जिसमें हाथ लगाते ही पानी आता है पर हाथ हटाते ही चला जाता है। उस नल के विलोम जैसा। फिर बताया कि कैसे ताबिज आदि पहने फिर जाकर सब ठीक हुआ। ये पुछने पर कि क्या वो ताबिज अभी भी पहने है तो बताया कि कभी नहाते समय गुम हो गया। लेकिन फिर कभी उन्हें कुछ प्रतीत नहीं हुआ। दुसरी कहानी का रोमांच ज्यादा था। जिसमें परी प्यारी न होकर परेताई हो गयी थी। अंकल ने बताया कि उनके पिता के मामा जो गाजीपुर में रहते थे। उस जमाने में उनके ठाठ थे। वे बग्घी से चलते थे। इसी बीच अंकल ने पढ़ाई से ब्रेकअप शब्द का जिक्र किया.....तो मेरे मन में आया कि ब्रेकअप का दौर तब भी था.....बस अब उसका साम्राज्य कई क्षेत्रो में फैल गया है। बताया कि उनके पिता के मामा एक बार बग्घी से घर जा रहे थे तो उन्हें एक परी दिखी थी। कुछ दिनो बाद उनकी शादी हो गया। शादी के कुछ महिने बाद वो बीमार हो गये। काफी इलाज के बाद वे ठीक नहीं हुए। डाक्टरो ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पर उनके पिता ने उन्हें जलाया नहीं। घर के पास ही स्थित कुंए के पास उनके जरूरी सामान के साथ सोफा, बेड, किताबे इत्यादि वस्तुओं के साथ उन्हें वहां दफनाया गया। कुछ दिनो के बाद उनके साथ कब्र में डाली गयी चीजे कुंए में तैरती दिखी। तो फिर कब्र को खुलवाया गया। कब्र को देख सभी आश्चर्यचकित रह गये। वहां से शरीर गायब था। फिर बनारस से प्रकाण्ड ब्राहमण बुलाये गये। फिर कई दिनो तक पूजा -हवन इत्यादि हुआ। इसके बाद ब्राहमणो ने बताया कि वो किसी भी रिश्तेदार को एक-एक कर तीन बार दिखाई देगे। इस बीच उन्हें देखने वाला उनका हाथ पकड़ लेगा तो वो यही रूक जायेेंगे वरना हमेशा के लिए गये। उस ब्राहमण के अनुसार वो तीन बार दिखे। सबसे पहले एक रिश्तेदार को दिखे तो वो पहले बेहोश हो गये, फिर जग कर खोजा तो गायब। इसके बाद वो अपने पिता को दिखे तो वो भी मुर्छित हो गये। फिर अंतिम बाद वो अपने पत्नी को घर में स्थित एक पेड़ पर बैठे दिखे.....फिर वही हुआ उन्हें देखने के बाद वो भी अचेतावस्था में चली गयी। फिर वो कभी नहीं आये। अब इन कहानियों की पीके से तुलना करे तो करे तो लगता है कि वो भी सही है और ये भी सही है। कुछ तो लाजिक होगा जो दोनो अपने स्थान पर सही है। तो मेरे हिसाब से यही लगा कि भुत-प्रेत, दानव या देव, ईश्वर, भगवान हो या न हो पर इस दुनिया में पाजिटिव व निगेटिव चीजे हमारे बीच है। वह हमारे बीच जिस रूप में दिख जाय उसे वह नाम दे देते है। तब के निगेटिव चीजो को हटाने के लिए हमारे उस समय के पाजिटीव वाले संत, बाबा, फकीर, पीर दस चेले उन्ही के दृढ़शक्तियों को भुनाने का प्रयास करते हुए अपनी दुकानदारी चला रहे है।
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Papa ki kahaniyo ko itne aham sandesh se jodkar tumne unka mahtav badha diya dev....pata hota to papa se bavhpan me hi kah deti ki pahle dev ko sunayie ye kahani baad me hum uske hi muh se sun lenge...its awesome
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