Wednesday, 7 January 2015

पीके पर मेरी जीके



पीके फिल्म को लेकर जो धार्मिक विवाद  हुए है, या हो रहे है, मै सर्वप्रथम उस पर न जाकर कुछ और बोलना चाहुंगा जो मैने फिल्म देखते समय पाया। विरोध करने वालो के लिए कहुंगा कि बोलने की अभिव्यक्ति सब की होनी चाहिए, वो भी अपने तर्को से न की हो हल्ला तोड़-फोड़ से। फिल्मे किसी के नजरिये से अच्छी और किसी के नजरिये से गलत होती ही है। सबक अपना नजरिया है।  पर सही और गलत के लिए उसी को जिम्मेदार ठहराना चाहिए, जिसका जो काम है। फिल्म में अगर संगीत गलत है तो गायक और उसे बनाने वाले, एक्टिंग गलत है तो एक्टर, कहानी गलत है तो लेखक, फिल्म बनी गलत है तो डायरेक्टर व प्रोड्यूसर। हर बात में एक्टर को गलत नहीं बताना चाहिए। पर क्या करे ये भी हमारे समाज का एक नजरिया ही बना है कि फिल्म के अच्छे या बुरे होने को हम एक्टर से ही जोड़ देते है, जिसे बदलना होगा। धार्मिकता से अलग भी मैने पीके फिल्म में कुछ चीजो को पाया है। जिसके लिए एक्टर गलत हो न हो, लेखक व डायरेक्टर इस मामले में जरूर लुल हो गये है। अब बताउ कि एलियन पीके धरती गोला पर आने के बाद यहां की भाषा सिखने के लिए एक लेडिस के पास जाता है और उसका हाथ पकड़ कर उसकी पूरी भाषा अपने अन्दर टिरांसफर मारता है। जिस लेडिस के पास पीके को भाया यानि संजय दत्त जिस काम के लिए ले गया था.....उसका पेशा क्या है.....फिल्म देखने वाले जानते ही होंगे। इस सब के बावजूद जब पीके न्यूज चैनल के आफिस पहुंचता है तो फिर कण्डोम के गिरे पैकेट को उठाकर सबसे पुछने के बाद चैनल हेड चैरी से क्यों पुछता है कि ये क्या है और इसका उपयोग क्या है। इसके बारे में तो पीके को लेडिस से भाषा टिरांसफर के दौरान सबसे ही पता हो जाना चाहिए था। इसके बाद एक पुलिस थाने में जब पीके भगवान पर केस दर्ज कराने जाता है तो पुलिस वाला उसके पास पड़ा ईसाई डाक्टर का पहचान पत्र देख उसे शराबी समझ कहता है कि अरे डाक्टर साहब इनता क्योें पीते हो कि अपना धर्म भुल जाते हो, चर्च की बजाय मंदिर जाकर दंगा करायेगे क्या। ये दंगा वाली लाइन से तो यही मैसेज जाता है कि दुसरे धर्म स्थल में नहीं जाना चाहिए, नहीं दंगा हो जायेगा। बात जगत जननी उर्फ जग्गु की करे तो वो अपने शादी के लिए चर्च जाती है, पर पूरे फिल्म में मैरेज रस्ट्रिरार शब्द का प्रयोग हुआ है। इस सबके बावजूद फिल्म उम्दा है। बात धार्मिकता वाले की करे तो तमाम प्रतिक्रियाओं को दरकिनार करते हुए मेरा मानना है कि फिल्म थोड़ी बैलेंसिंग बन सकती थी। जैसा कि ओ माय गार्ड थी। फिल्म में बाते बहुत कुछ है पर ज्यादा लिखने पर पढ़ने वाला बोर होता है तो बात को खत्म भी लगभग फिल्म के अंतिम डायलाग से खत्म करूंगा कि पीके कुछ सिख गया और कुछ सिखा गया। जैसा कि अब पीके पार्ट-2 की भी चर्चा शुरू हो गयी है, तो आशा रहेगी कि फिल्म इन विवादो और गलतियों से कुछ सिखेगी और पार्ट-2 में भी कुछ सिखायेगी।

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