Monday, 17 August 2015

दिमाग आउट ऑफ़ कंट्रोल इन माई पेशा पत्रकारिता - भाग दो

गुस्ताखी छाप का भाग 2 ये की मै कुए का मेंढक । तो बताऊ की उन्ही पत्रकार महोदय ने मुझे कहा की तुम अच्छा लिखते हो, रवीश कुमार को फालो करते हो पर उनकी तरह खबर नही बनाते। तुम कुए के मेंढक हो। यहा भी मै सुन ही रहा था, कह नही सकता था गुस्ताखी जो हो जाती। तो मै जो उन्हें नही कह सका वो बता रहा की उनके हिसाब से मै कुए का मेढक ही सही पर कुए की गहराई को भी देखे। दायरा कम जरुर है, पर सोच की गहराई भी है। रही बात दायरे से निकलने की तो कुए से पानी काढ़ते समय कभी-कभी आशावादी व बड़े दायरे में जाने वाले मेंढक बाल्टी में आ ही जाते है। मुझे भी इंतजार है सहारे वाले बाल्टी की जो मेरी कुए की गहराई तक पहुंच सके। और रही बात रवीश की तरह बनने की तो वो कोई नही बन सकता। कुछ मैंने उनसे सीखा है और कुछ मेरे अपने भी तरीके है.......वो आप मेरे फेसबुक पोस्ट और देवपंती ब्लाग पर पढ़ सकते है। काश महोदय ने मेरे फेसबुक पोस्ट और ब्लॉग को भी पढ़ा होता अखबारी खबरों को छोड़ कर......अख़बारो में अब वो साहस कहा जो छाप सके असल जज्बातो को, हम तो कुए के मेढक ही सही जो समझते है हर बातो को ।

दिमाग आउट ऑफ़ कंट्रोल इन माई पेशा पत्रकारिता

मै सुन रहा था कोई एक पत्रकार सज्जन समाचार लिखने का तरीका बताते हुए कह रहे थे की खबर ये बनाइए की जैसे श्रम विभाग में मजदुर की न्यूनतम पारिश्रमिक 200 रूपये प्रतिदिन होती है और सरकार जो मनरेगा योजना चला रही है, उसमे मजदूरी 150 के लगभग है। सरकार अपने ही मानको के तहत ही योजनाओ का संचालन नही कर रही है। ये तो हर के पत्रकार के लिए खबर है। पर मेरी आदत लिक से हट कर सोचने की है तो सोचा पत्रकार महोदय से कहू की महाराज वो छोडिये अपने न्यूज़ में पत्रकारों को डालिए न्यूज़ और जबरदस्त बनेगी क्यूंकि बहुत पत्रकार है जिनकी प्रतिदिन की मजदूरी उस मनरेगा वाले मजदुर से भी बद्तर है। पर पत्रकारिता के पर्वत दिगार ये कहा सोचते है, और मै कुए का मेढक मेरी क्या औकात जो उन्हें कह सकू कुछ। मै कुए का मेढक क्यों ये अगले गुस्ताखी छाप में।
डिस्परेट- दिमाग आउट ऑफ़ कंट्रोल इन माई पेशा पत्रकारिता ।

एक सुबह घाट पर

सुबह एक दोस्त ने उठाया है.....और घाट तक ले आया है...आप क्या सोचे की मै ये कहूँगा कि.... न तो मुझे किसी ने बुलाया है..ना तो मै आया हु....मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है......भाई ये डायलाग प्रधान सेवक जी के नाम पेटेंट हो गया है और हम ठहरे पेसेंस वाले....हम धीरज धर लेंगे माँ ने हमे नही बुलाया.....बिन बुलाये पहुंच गये।  

.‎ है की नही साहब

 यूपी के मीरजापुर जिले में पुलिस कार्यवाही स्थल के अच्छे दिन आ गये...तभी तो नगर के देहात कोतवाली क्षेत्र के भरूहना चौराहे के पास एक ऐसा पुलिसिया कार्यवाही स्थल बनाया गया है......समझ नही आता की पुलिस बूथ है.....पुलिस चौकी है या पुलिस थाना.....दरअसल ये इसलिए की बूथ है तो आस पास के बूथ देख ले.......ये शानदार और बड़ा बना है........तो चौकी....... पर चौकी है तो चौकी प्रभारी की तैनाती होनी चाहिए और चौकी के बाहर उसका नाम.....पर नाम लिखा है थाना प्रभारी सॉरी कोतवाली प्रभारी का नाम......भौकाल टाइट है। हा एक बात और की जहा पर यह पुलिस कार्यवाही स्थल बना है वहा पर साल भर पहले कोतवाल ने गरीब गुमटी वालो को हटाकर कहा था की यहा दुबारा अतिक्रमण हो तो मेरे नाम का कुत्ता पाल ले.....अब कोई इन्हें याद दिला दे........कुत्ता हमारे घर है नही आएगा तो सोचेंगे .....आम इन्सान को हर काम के लिए परमिशन लेना होता है पर पुलिस ने बिना पमिशन के ये सब बनाया है.....आप बताइए गलत है या सही .......है की नहीं साहब।
नोट - एसपी साहब का हर बात ऐसा कहना होता है।  है कि नही तो इसलिए कहा मैंने की है की नहीं साहब 

whats app news

एक पत्रकार पुरे दिन कितना संघर्ष करता है। मीडिया संस्थान उसे उसका वाजिब मेहनताना दे नही पा रहा। ऊपर से एक और फोकट की नोकरी whats app के आने से शुरू हो गई है। जिसे देखो ग्रुप बनाके whats app पे न्यूज़ लेने को लालायित है। बहुत से लोग स्वेच्छा से न्यूज़ आदान प्रदान कर रहे है। जो ठीक भी है। पर बहुतो ने तो बहुतो पे प्रेसर मार दिया है न्यूज़ के लिए। जिसमे बहुसंख्यक इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले है। जिन्हें खबर के पुष्टी की कम ब्रेकिंग की ज्यादा जल्दी रहती है। बात whats app नोकरी की हो रही थी। कुछ ऐसे तत्व है जो खबरों पे तो कम रहते है पर खबर उन्हें पहले चाहिए। इसके लिये जैसे झौआ भर चैनल व अख़बार आ गए है वैसे ही whats app पे ग्रुप खुल गए है। जिसमे अपनी दुकानदारी चलाने के लिए लोग दुसरो के दुकान से संपर्क साधे हुवे है। ऐसे में अपनी दुकानदारी चलाना मुश्किल हो गया है। ........मगरुआ तू मत लिहे ई whats app वाला फोन नहीं तहु के चलाना पढ़े दूसरे क दुकान।