Saturday, 26 April 2014

डम डम डमी डमी

चुनाव हमेशा चार-पांच प्रमुख पार्टियों के बीच ही लड़ा जाता है, पर हमारे लोकतंत्र की महिमा है कि सभी को अपना भाग्य अजमाने का मौका-मिलता है और मिलना भी चाहिए। पर कुछ प्रत्याशी तो ऐसे खडे़ हो जाते है जिनका कोई जनाधार भी नहीं होता। जो ग्राम प्रधानी व सभासद का चुनाव भी नहीं जीते रहते ऐसे में वे विधायकी हो या सांसदीय सब में अपना भाग्य अजमाने के लिए मैदान में कुद पड़ते है। कुछ निर्दल प्रत्याशी होते है जो जीतते है। पर उनका जनाधार होता है और वे अपने जनाधार के बल पर मेहनत करके अपनी जीत सुनिश्चित करते है। पर आजकल तो सांसदीय का चुनाव हो या विधायकी का सबमें दर्जनो निर्दल प्रत्याशी खड़े हो जाते है, जिनका जनाधार नहीं होता। कई प्रत्याशी तो ऐसे है जो हर चुनाव में मैदान में आ जाते है पर वो कुछेक हजार वोट पाकर वोटकटवा की भूमिका तक ही सिमित रह जाते है। कई तो हजार का आकड़ा भी नहीं पर कर पाते। कई तो इसलिए नामांकन करते है कि उनके आने से अन्य बड़ी पार्टियां उनसे जातिगत वोट कटने के डर से मोलभाव करके उन्हें बैठा दे। ये चर्चा तो पुरानी है नयी चर्चा ये है कि प्रत्याशी बड़ी पार्टियों द्वारा खड़े डमी प्रत्याशी होते है। जिससे वे अपने विरोधी के जातिगत वोट को काटने के साथ ही डमी प्रत्याशी के वाहन व एजेंट का लाभ अपने लिए उठाने के लिए उन्हें चुनाव लड़ाते है। वैसे डमी का जमाना है......मोबाइल के डमी दुकान में दिखते ही.........ऐसे में चुनावी डमी........जय हो डमी महाराज की। 

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