Monday 14 April 2014

पत्रकारिता के पर्वतदिगार व नीम का पेड़


जिला मुख्यालय का नीम का पेड़ बहुत ही चर्चाए आम हो गया है। इस पेड़ के नीचे कुछ न कुछ चर्चा चलती ही रहती है। धरना प्रदर्शन तो होता ही है। पर सबसे महत्वपूर्ण चर्चा पत्रकारो की होती है। इस नीम के पेड़ के नीचे जिले के अधिकतर पत्रकार इकट्ठा होते ही है। जहां वर्तमान समय के पत्रकारो की कई तरह की चर्चाएं होती है। बीते दिनो पत्रकारिता के कुछ पर्वतदिगार इकट्ठा हो गये। उनकी बाते तो एैसी थी कि उन्होंने ही पत्रकारिता का स्वर्णीम काल बनाया हो। उनमें से एक ने कहा कि हम अपने समय में लिखते थे तो अधिकारी कापते रहते थे। एक ने वहां उपस्थित दुसरे से कहा कि आप की कलम का तो जवाब नहीं। मैं यह सब वहां खड़ा सुन रहा था। तो मैने भी उनमें से एक वर्तमान के पत्रकार से पूछा कि हम जैसे पत्रकार तो आज ही प्रस्फुटित हुए है प्रस्फुटित अर्थात जन्म होना। ऐसे में पत्रकारिता खराब कैसे हो गयी और किसने की। एक बात जो मैने उनसे नहीं पूछा, खुद से और अपने ही समयकाल के पत्रकारो से पूछा कि अगर पत्रकारिता के पर्वतदिगार पत्रकारो की कलम में इतनी ही ताकत थी तो उन्होंने पत्रकारिता छोड़ क्यों  दी ... और पत्रकारिता खराब हुई है तो उसे बिगाड़ने वाला कौन है। एक बात और बताना भुल गया कि पत्रकारिता के महानकाल और खराबकाल के उस चर्चा के दौरान किसी ने उन्हीं पत्रकरो से बातचीत में वहां मौजूद बहु आयामी वाले दुसरे पत्रकार के बारे में कहा कि अरे पता नहीं भईया का जो घर बना है, उसमें सिर्फ मिस्त्री और लेबर लगे थे बाकी समान तो सब ऐसे ही। तब समझ में आया कि  हमारे पवर्तदिगार पत्रकारो की कलम में कितना दम था। इन्होंने अपनी कलम के बूते पत्रकारिता का स्वर्णीम काल नहीं बनया बल्कि अपना भविष्य काल बनाया। तभी बनने के बाद पत्रकारिता छोड़ दी  और मौके मिलने पर कलम की ताकत का एहसास कराते रहते है...... हमारे जैसे आज के प्रस्फुटित पत्रकारो से।

1 comment:

  1. कास इस बेमिशाल नीम के पेड़ को देख पाते

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