आज भी गावो में बड़ी जात और छोटी जात का फर्क बरकरार है, समानता है तो बस उनके काम के लिए। 6 जून रविवार को नगर से सटे एक गांव में एक पार्टी का कार्यक्रम था। कार्यक्रम एक बड़ी जात के परिवार में था। वहां पर एक एक पार्टी के उम्मीदवार का स्वागत अभिनंदन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। मैं भी वहां खबर के लिए फंस गया था। कार्यक्रम स्थल पर बने पंडाल के बीच में बीस-तीस की संख्या में महिलाएं बैठी नेताजी का इंतजार कर रही थी। कार्यक्रम 12 बजे का था और नेताजी ढाई बजे के लगभग आये। कार्यक्रम के बाद भोजन की व्यवस्था थी, उस दौरान देखा कि कार्यक्रम खत्म होने के ऐलान के पहले उन महिलाओं को इशार कर दिया गया, जिसके बाद वो महिलाएं वहां से निकली गयी और फिर भोज शुरू हो गया। मैं पूरे कार्यक्रम तक वहां था, भोजन के लिए मुझे भी कहा गया पर मेरा मन नहीं हुआ। इसके दो कारण थे एक तो भोजन करने पर न्यूज पेड न्यूज हो जाती और दुसरा और भोजन से पहले उन महिलाओं का चला जाना। सोचने लगा कि बात वहीं बड़ी और छोटी जात वाली ही है तभी तो जो महिलांए इतनी देर से कड़ी धुम में बैठी थी वो भोजन के समय क्यों चली गयी, उन्हें भोजन करने का अधिकार नहीं था क्या। मेरे इस कथन पर सफाई भी आयेगी की भोजन बफर सिस्टम था इसलिए गांव की महिलाएं शर्म के मारे चली गयी पर जो नेता महिलाओं को उंचे मकाम पर लाने की बात करते है उनके सामने उनके घर में बफर भोजन करने में क्या शर्म। कार्यक्रम से ही एक बात और कि शायद यही कारण है कि ये महिलाएं सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक है तभी तो जिस समाज के पुरूष सजधज के अपने पारिवारिक राजनैतिक विरासत को दिखा रहे थे उनके घर की महिलाएं पंडाल में क्यों नहीं दिखाई दी। इसलिए पहली लाइन में कह रहा था कि फर्क बरकरार है और समानता है तो सिर्फ अपने काम के लिए।
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