चुनाव हमेशा चार-पांच प्रमुख पार्टियों के बीच ही लड़ा जाता है, पर हमारे लोकतंत्र की महिमा है कि सभी को अपना भाग्य अजमाने का मौका-मिलता है और मिलना भी चाहिए। पर कुछ प्रत्याशी तो ऐसे खडे़ हो जाते है जिनका कोई जनाधार भी नहीं होता। जो ग्राम प्रधानी व सभासद का चुनाव भी नहीं जीते रहते ऐसे में वे विधायकी हो या सांसदीय सब में अपना भाग्य अजमाने के लिए मैदान में कुद पड़ते है। कुछ निर्दल प्रत्याशी होते है जो जीतते है। पर उनका जनाधार होता है और वे अपने जनाधार के बल पर मेहनत करके अपनी जीत सुनिश्चित करते है। पर आजकल तो सांसदीय का चुनाव हो या विधायकी का सबमें दर्जनो निर्दल प्रत्याशी खड़े हो जाते है, जिनका जनाधार नहीं होता। कई प्रत्याशी तो ऐसे है जो हर चुनाव में मैदान में आ जाते है पर वो कुछेक हजार वोट पाकर वोटकटवा की भूमिका तक ही सिमित रह जाते है। कई तो हजार का आकड़ा भी नहीं पर कर पाते। कई तो इसलिए नामांकन करते है कि उनके आने से अन्य बड़ी पार्टियां उनसे जातिगत वोट कटने के डर से मोलभाव करके उन्हें बैठा दे। ये चर्चा तो पुरानी है नयी चर्चा ये है कि प्रत्याशी बड़ी पार्टियों द्वारा खड़े डमी प्रत्याशी होते है। जिससे वे अपने विरोधी के जातिगत वोट को काटने के साथ ही डमी प्रत्याशी के वाहन व एजेंट का लाभ अपने लिए उठाने के लिए उन्हें चुनाव लड़ाते है। वैसे डमी का जमाना है......मोबाइल के डमी दुकान में दिखते ही.........ऐसे में चुनावी डमी........जय हो डमी महाराज की।
चुनाव चर्चा के दौरान.....एक मुस्लिम नेता मित्र मिल गये। चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि आप तो बनिया है तो भापजा को ही वोट देंगे। मैने कहा मैं बनिया तो हूं ही पर इससे ये कैसे कह सकते है कि मैं भाजपा को ही वोट दूंगा और पेशे से पत्रकार हूं तो वोट को तो काफी तोल-मोल के ही दुंगा। वो कोई भी किसी भी पार्टी का हो। इस पर महोदय ने कहा कि तो किसे देंगे। तो मैने कहा कि किसे तो नहीं बता सकता पर किस तरीके के नेता को दुंगा वो बता सकता हूं। और ये भी साफ कर दिया कि मीरजापुर जिले से सपा व बसपा के उम्मीदवार उस कैटेगरी में नहीं आते कि उनको वोट दें। क्योंकि बसपा से उस विधायक की पत्नी चुनाव लड़ रही है। जिसे लोगो ने पहले देखा ही नहीं होगा और विधायक जी आम आदमी से कैसे खास बन गये और उन्हें जिताने वाले जस के तस......तो भला उनकी पत्नी जो सामने तक नहीं आती बस गाड़ी में बैठे-बैठे हाथ जोड़ के काम चला रही है। वो जनता के मुद्दो पर कैसे सामने आयेंगी। शायद सब कुछ बिरादरी से हो जाता है बिरादरी की कृपा है। बात सपा के उम्मीदवार की तो उनके मंत्री वाले रूतबे से तो लगता ही नहीं कि वो इस समय चुनाव में भी आम आदमी बनेंगे वो तो आचार संहिता में भी खास बने फिर रह है। सरकार है भाई......। प्रमुख पार्टियों में बची भाजपा, कांग्रेस व आप तो उन्हीं में से चुन लिया जायेगा। जो ज्यादा जानकार होगा, जनता के मसलो पर अच्छी पकड़ रखता होगा, और जो जितने के बाद भी आज की तरह सक्रिय नजर आये.....बाद की बाद पर इतने गुण इनमे ंपरख कर इन्हीं में से किसी एक को वोट दिया जायेगा। मेरे ये विचार इस समय के पार्टी के उम्मीदवारो के लिए है। क्योंकि वोट उम्मीदवार की काबिलियत को देखकर करता हुं....पार्टी की पावर व लहर को देखकर नहीं।