दुर्गा पूजा मूर्ति विसर्जन में बजरंग बली खूब छाये रहे। एक गाना खूब बजा
बजरंग बली कूद पड़े ले के गोल गप्पा। पूरा मुखड़ा है ...... निकली सवारी भोला
के प्यारी, बाबा के नारा लगाये रहे बप्पा, बजरंग बली कूद पड़े ले के गोल
गप्पा ..बजरंग बली कूद पड़े ले के गोल गप्पा ..बजरंग बली कूद पड़े ले के गोल
गप्पा । गोल गप्पा क्या चीज है आप सभी जानते हो ... पर गाने में बजरंग बली
को गोल गप्पा ले कर कूदने की क्या जरूरत पड़ी समझ मे नही आया। जहा तक बाबा
के नारा लगाये रहे बप्पा वाली लाइन है समझ में आती है ...गोल गप्पा ले कर
कूदने वाली लाइन का क्या मतलब है पता नही। हो सकता है, गाना लिखने वाले ने
गाने की लाइन को लयबद्ध करने के लिए पहली लाइन का अंत बाप्पा और दूसरी लाइन
का अंत गोल गप्पा कर दिया हो। अर्थ क्या निकलता है, उससे लेखक को कोई मतलब
नही है। नये युग के लेखक गायक है। जहा तक जानकारी है बजरंग बली लंका में
कूदे थे वो भी गोल गप्पा के लिए नही बल्कि सीता माँ तक भगवान श्रीराम के
संदेश को पहुचाने के लिए। आप लोगों को कुछ और याद हो तो मेरी जानकारी का
विस्तार करियेगा। पुरे गाने में शिव परिवार का गुणगान है ..पर गाने के
बीच-बीच में बजरंग बली गोल गप्पा लेकर क्यों कूदते रहते है पता नही ।
शायद लेखक ने गाने में बजरंग बली के पात्र को कूदने तक ही सीमित रक्खा है।
एक लाइन ये की जीवन में कभी खाय न गच्चा, बजरंग बली कूद पड़े
.............। गाने की आखरी लाइन ये कि दयालाल यादव के गीत रहे सच्चा ,
बजरंग बली कूद पड़े .............। गाने में खुद की पब्लिसिटी। गाने का
संगीत तेज और नचाऊ है तो लोग नाचते है ...गाने के बोल क्या है किसी को क्या
मतलब ......अच्छा बजने से मतलब है बस। गाने में गेस्ट अपीयरेंस है बजरंग
बली का। पर गाने का फोकस उन्ही पर है बिना अर्थ व मतलब का ।
Friday, 26 October 2012
Tuesday, 16 October 2012
ग्रीन बर्फी
रविवार को मै ग्रीन बर्फी {भांग की बर्फी } के आगोश में था ये तो अच्छा था कि खबरों की एडिटिंग व संपादन हो गया था वरना खबरे भी होली के मौसम सी छप जाती पर मामला गडबडा जाता क्योंकि तब गुस्ताखी माफ़ जो लिखना भूल जाते .........बस मौसम ही था होली वाला ..............बहुत सी बाते याद आने लगी जिन्दगी जैसे स्लोमोशन सी हो गई थी ..हम क्या बक हरे थे ..खुद भूल जा रहे थे वो पर्फेक्स्ननिस्ट की फिल्म वाली शार्टटर्म मेमोरी लॉस की लाइन चरितार्थ हो रही थी ...अच्छी बुरी यादे सभी आई ....पर दुःख वाला कुछ ज्यादा ही .....किसका फोन बजा किस्से बात हुई कुछ पता नही था बस बकैती जारी थी .... अंदर का एक्टर जाग गया था जैसे । इंतजार था बस एक डायरेक्टर जो मुझे डायरेक्ट कर सके मेरी खुद की फिल्म ग्रीन बर्फी को। आया वो आया मेरे जज्बातों व भावनाओ को समझने वाला जिसे मेरी हर हरकत की बारीकिय पता है। या यु कह ले की पूरी पीएचडी की है उसने मुझ पर।।मेरा मित्र भाई विवेक। लगा बर्फी की तरह अब मेरी भी फिल्म ग्रीन बर्फी हिट हो जाएगी। मै अभिनय के नैय्या में गोते लगाने लगा। मेरे इमोशन हवाओ से बाते कर रहे थे बिना किसी कट के एक ही टेकअप में सिन किये जा रहा था।
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