Wednesday, 21 December 2016

सड़क पर दिखता है 'यादव' 'राज' रफ्तार भरते है 'मोदी' 'दादा'



                                      बतौर मुख्यमंत्री तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का राज है।
                                      पर सड़को पर भी यादव राज दिखायी देने लगा है।
                                      महात्मा गांधी के रामराज की परिकल्पना भले ही पूरी न हो पा रही हो, पर
                                      जिले की सड़को पर 'राम' 'राज' भी दिखाई दे रहा है। यही नहीं 'यादव' 'राज',
                                      'राम' 'राज' के साथ सड़को पर मोदी भी रफ्तार भर रहे है। आप भी सोच रहे
                                      होंगे कि ये कैसा 'यादव' 'राज' व 'राम' 'राज' है जो  देश-प्रदेश के साथ
                                      मीरजापुर  की सड़को पर दिख रहा है। बता दें कि बात महात्मा गांधी के
                                      रामराज की नहीं बल्कि गाड़ी के नंबरो को शब्दो में लिख कर चल रहे राम व
                                      राज की हो रही है।  इसी तरह मोदी, दादा और पापा लिखे नंबर प्लेट वाले
                                     वाहन भी सड़को पर रफ्तार भर रहे है।

                      गाड़ी का नंबर अंको में लिखने के बजाय नंबर को युनिक करने के लिए उसे
                      शब्दो में लिखने का प्रचलन बढ़ गया है। इसके लिए वाहन मालिक उन्हीं अंको
                     को चुन रहे है, जिससे उनके पसंद के शब्द बन जाए। इन्हीं शब्दो में खास
                     शब्द है  राम, राज, यादव , मोदी, दादा व पापा। राम शब्द लिखने के लिए
                     लोग चार अंको के वाहन संख्या में किसी भी संख्या का प्रथम अंक लेने के
                     बाद  उसके आगे 214 का अंक लेते है। 214 अंक व 2746 अंक से शब्द में राम
                     तैयार होता है ।
 इसी तरह राज शब्द लिखने के लिए 2151 अंक लेते है। 2151
                     को इस तरह से लिखा जाता है कि वह शब्दो में राज लिखा नजर आता है। दादा व
                    पापा लिखने के लिए 4141 अंक लिया जाता है। इस अंक से शब्दो में दादा व
                    पापा तैयार हो जाता है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके
                    नाम मोदी का प्रचलन तेजी से बढ़ा है।   वाहन पर अंको को शब्दो मे बदलने की
                    कारीगरी दिखाने वाले पेंटरो ने इस शब्द के लिए भी अंको को तलाश लिया।
                   मोदी लिखने के लिए 4749 अंक को चुना। 
प्रदेश में तो अखिलेश यादव का  है ही। तो  उनके                      समर्थक वाहनो के नंबर प्लेट पर वाहन नंबर 4149  को  यादव के रुप में लिख कर चल रहे                     है। अंको में इन्हीं यूनिक शब्दो को पाने के बाद वाहन चालक नियमो को तोड़कर नंबर प्लेट                      पर राम-राज, पापा व मोदी आदि शब्द लिख  कर चल रहे है।

Tuesday, 6 December 2016

लप्रेक_लव_टाइम_इन_नोटबंदी

हेल्लो राहुल हैप्पी बड्डे सारी यार मैंने लेट में विश किया।
कोई बात नही यार
क्यों कोई बात नही, मुझे पहले विश करना था न। मैंने फोन भी किया रात में, पर तुम्हारा फोन नही लगा फिर whats aap किया ।
ठीक है अभी तो कर रही हो न फोन पर ।
क्या ठीक है बाकि तो पहले कर दिए होंगे, मै पीछे रह गई।
नही यार शालू तुम ऐसे मत सोचो तुम मेरे 100 प्रतिशत हो। बाकि सब दसमलव के बाद।
ओ..... ये बात तब ठीक है
ये बातओ बड्डे पर क्या कर रहे हो
क्या करू क्या ....रोज की तरह ऑफिस
अरे राहुल पार्टी नही करनी
क्या पार्टी एक तो तुम हो नही ऊपर से नोट बंदी
नोटबन्दी से याद आया राहुल तुम मुझसे भी तो दूर नही चले जाओगे पुराने नोट की तरह ।
नही शालू तुम तो मेरी महात्मा गांधी हो।
महात्मा गांधी
हा बाबा ...महात्मा गांधी .... नयी करन्सी कोई भी आये। दिल पर तो तस्वीर तुम्हारी ही है और रहेगी।

Thursday, 25 August 2016

मैं सोचता हूं तो यह सोचता हूं (गेस्ट कालम)


हिंदी प्रेमी मित्र आशीष जायसवाल ने बहुत दिनो के बाद अपनी एक कविता प्रेषित की है। वैसे तो इनकी कई कविताओं का संग्रह मेरे पास है। पर मैं उसे प्रसारित नहीं कर पा रहा हूं। मित्र की इस नयी कविता से बाकी कविताएं। जल्‍द ही आपको मिलेगा पढने को। तो ि‍फलहाल के लिए आशीष जायसवाल "आशु" की कविता ।  (गेस्ट कालम)













मैं सोचता हूं तो यह सोचता हूं 
जो देखा है सबने मैं क्या वो देखता हूं।

हर पल देखते है नए कलेवर,
अपनो के बदलते यह तीखे से तेवर,
धन की लड़ाई  और लालच का मंजर,
जो खुद के दिलो को बनाता है बंजर, 

यह पैसे की चाहत है या झूठा दिखावा,
अपनों को ठगना यह कैसा छलावा,  
खुद का प्रदर्शन और पैसे का लोभ,
प्रेम की नदियाें में लाता विछोभ,

अपनो का अपनो से यूं ही बिछड़ना,
संपत्ति को लेकर भाई-भाई का लडना-झगड़ना ,
खून के रिश्तो में  कैसे आता है यह भेद,
जो टूटे "घर-मंदिर" से उड़ती है रेत,

बनते थे जो बेटे बाप का सहारा,
लगता है उन्हें भारी मां-बाप का गुजारा, 
टूट के बिखरने के कैसे बहाने,
समय की गति से क्या बनते अपने बेगाने ?

अब सोचता हूं  तो यह सोचता हूं
जो सोचा है मैंने क्या सही सोचता हूं?

Friday, 26 February 2016

इश्क में माटी सोना कोई मेरे लिए ला दो ना

तुमने कहा था न इश्क में माटी सोना कोई मेरे लिए ला दो ना। मेरा भी वादा था, तो आधा काम मैने कर दिया, किताब को दिल्ली से मंगाकर पूरा भी जल्द हो जाएगा। बस मिलना बाकी है। पर जानते हो ना तुम ये दुनिया है। इश्क सुनते ही क्या-क्या सोचने लगते है। ऐसे में तुमसे किए वादे को बड़ा कर दिया। एक नहीं पांच माटी सोना आर्डर कर दिया। अब ये मत पुछना कि किसके लिए। एक तुम्हारे लिए-एक मेरे लिए। बाकी उनके लिए जो तुम्हारे जैसी ही है। पर हमारे तुम्हारे बीच दोस्ती में वो हो जाती सेंटी है। हो भी क्यों न वो सब, हम दोनों की दोस्ती भी तो ऐंटिक है। तुमसे तो वादा था और इनको सरप्राइज देना था। तो सब के लिए है इश्क में माटी सोना, क्योंकि तुम सब मेरे यार हो ना।
गिरीन्द्र भैया रवीश सर के बाद आपकी लप्रेक पढ़ने के बाद मन बावरा हो रहा, लप्रेक लिखने को। पत्रकारिता करते हुए समय नहीं मिल रहा, पर माटी सोना पढ़ कर लग रहा कि निकालना पड़ेगा समय। रवीश सर की इश्क में शहर होना किसी ने मुझे दी थी तो मैने भी वादा किया था उसे आपकी बुक इश्क में माटी सोना देने का। और विनीत भैया के किताब इश्क कोई न्यूज नहीं के लोकार्पण में साथ होने का। किताब को मेरे शहर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एनडीटीवी एमआई में पढ़ रहे छोटे भाई जैसे प्रिय शिवजी ने। अपनी ही बात करता रहा, आपके लप्रेक की नहीं। सो ये कि जो दिल के करीब हो उसके बारे में क्या कहूं। लव यू लप्रेक।
नोट- किताब मिलने के काफी दिन बाद इस पोस्ट पेस्ट कर रहा हू। तब तक विनीत भैया की किताब इश्क कोई न्यूज नहीं का भी विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पण हो गया। जबकि सोचा था कि हम तुम्हारे साथ वहां मौजूद रहेंगे।
‪#‎इश्क_में_यारी_होना‬
‪#‎लप्रेक‬

किताबी मित्र विथ लप्रेक

विश्व पुस्तक मेले में विनीत भैया के इश्क कोई न्यूज नहीं की लांचिंग में किया प्रामिस न निभा पाने के बाद आखिरकार प्रामिस डे पर 11 फरवरी सुदी के जन्मदिन पर अपने मित्र मंडली से बीएचयू कैंपस में मिलना हो गया। वैलेंटाइन डेे पर लप्रेक भेंट करने से अच्छा कुछ भी नहीं। प्रामिस के तहत मुलाकात के दौरान मंगाई गिरीन्द्र भैया की किताब लप्रेक- इश्क में माटी सोना उन्हें दे दी। इसी तरह सुदी के इश्क में माटी सोना, कोई मेरे लिए लादो ना की की मांग पूरी हो गई। वैसे मैं खाली हाथ नहीं लौटा हू। अपने महादेव टीम से मिलना ही सबसे बडा गिफट है मेरे लिए। अप्पी, सिम व अरु तुम से मिलना हर डे से बडा डे है। वैसे किताब के बदले किताब मुझे भी मिली। बनारस टाकिज। थैक्यू सुदी। बाकी कई अन्य किताबो का आदान-प्रदान बाकी है। इसके लिए मुलाकातो के दौर और भी बाकी है। है ना। 
‪#‎इश्कमेंयारीहोना‬
‪#‎लप्रेक‬
‪#‎हैप्पीवैलेंटाइनडे‬ 
‪#‎HappyBirthdaySudi‬