Tuesday, 24 July 2012


मेरी कश्मीर यात्रा ..... 



ब्लॉग बनाने के बाद  समझ में नही आ रहा था की अपनी कौन  सी बात को व्यक्त करू  जिससे की पढ़ने वाले को अच्छा लगे और खुद को भी तसल्ली मिले कि शुरुवात ठीक ठाक हुई है. सोच रहा था की खुद का ब्लॉग है तो खुद का शुद्ध सा  लिखा कुछ लिखू ....तभी एक लाइन मन में आयी  कि कुछ ऐसा लिखू  जिसमे अपनों का जिक्र हो और अपनी यात्रा हो......तभी याद आई अपने गुरु और अपने मित्रो संग अपनी पहली ऐतिहासिक यात्रा की  जहाँ  जाने का सब का मन करता है.......जो यात्रा धार्मिक, एन्जवाइंग  होने के साथ-साथ मार्मिक भी है. यहाँ मै ये बता दू की नीचे मै अपनी यात्रा को जिस कविता में पेश कर रहा हूँ उसमे कई और लोगो का सहयोग है क्योंकि ये यात्रा एक समूह की थी  जिसका नाम है महादेव टीम .....उस टीम के लोगो का  नाम देना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कही कोई कॉपी राईट का मुकदमा न कर दे....और सहयोग भी  तो मिला है उनका..... यात्रा के दौरान कविता बनाने में सहयोगी लोगो में ....हमारे आदरणीय सर नवीन कुमार,  मेरे प्यारे मित्र आशीष जयसवाल, मनीष दुबे, आमिर-उल-हक़, आशीष कटियार, सुदीप्ता सिन्हा, आराधना पाण्डेय, स्मृति बरनवाल, अपर्णा शुक्ला, आयुषी जयसवाल, ज्योति मिश्रा, सभी मित्रो के बड़े भैया राकेश मिश्रा उर्फ़ रिक्की भैया....कुछ लोग और थे यात्रा में जो अजनबी की तरह थे अजनबी बनकर ही रह गये. आशा करता हु मेरी इस पहली कविता रूपी ऐतिहासिक यात्रा हिंदी भाषी ब्लॉग पढ़ने वालो को पसंद आयेगी .....आपसे वादा करता हु की आगे आपको और सारी यात्राये करूँगा जिसमे पूर्णरूपेण मेरे ही भाव होंगे।.. कविता का सारांश नीचे है जिससे आप उसका सही से अवलोकन कर सके .......


देखो हम चल दिए दिए नये सफ़र की ओर,
माँ गंगा के तीर से कश्मीर की घाटियों की ओर,
सर ने की शुरुवात - दोस्तों से की बात ,
चले माँ के धाम देने, भक्ति की सौगात,
6 तारीख का आरक्षण माह मई है,
पूरी हुई परीक्षा अब समय सही है,
चले काशी नगरी से हम रेलगाड़ी पर चढ़कर,
माँ के दर्शन के लिए  उत्साह से भरकर,
मस्ती संगीत अन्ताछरी  का दौर,
छा गई खुमारी चहु दिशा- चहु ओर,
जम्मू  से उतर कर पहुंचे जब कटरा,
लोगो ने सोचा ऐसा समूह कहाँ से उतरा,
माँ का जयकारा और महादेव का नारा,
यही बनी पहचान हमारी, बड़ा अदभुद था नजारा,
टोली हमारी माँ के धाम में जो पहुंची ,
हुए माँ के दर्शन मिली विशेष अनुभूति,
माँ के दर्शन के बाद, चल दिए बाबा भैरो के द्वार, 
लगाया भभूत और मांगी मन्नते-मुरादे अपार,
कटरा से कश्मीर जाने के लिए हमने की बस,
जो चली रास्ते   में  यू  ही फंस-फंस कर,
गानों का गाना यो आनंद का रस,
शुरु हुआ हिसाब, जिसमे सबको थी कशमकस,
भवन से चले हम  अब कश्मीर की तरफ,
देखने प्रकृति का नजरा और घाटियों की बरफ,
झीलों का शहर और फूलो की घाटी,
किसी को ना  मिली सेटिंग, ना रिक्की भईया को शहजादी,
पहुंचे जब हम डल लेक तो क्या नजारा था,
घुमे जिस नाव पर उसका नाम ''शिकारा'' था,
बारिश की बूंदों ने उसे सवार था,
 जिन्दगी बनी सुहानी मन हुआ आवारा था,
बचपन से पढ़ा था हमने '' कश्मीर धरती का स्वर्ग है '' 
मान लिया सबने जब देखा यही '' गुलमर्ग '' है,
ऊँची-निचि राहो की रोचक घुड़सवारी,
हमने वहां  देखी-खेली दोस्तों के साथ बर्फ़बारी,
अब तैयार है  सभी, घर होने को रवाना,
रखा अपना-अपना सामान, शुरू हुआ खाने का खाना,
आया अब विदाई का समय, पर सबके दिलो में है ये तराना,
कि जिन्दगी एक सफ़र है सुहाना, यहाँ कल क्या हो किसने जाना   














  
 

3 comments:

  1. Dev tummne purani yaade pal bhar me taaza kar di yaar...kashmir ki waadiyaan aur bhi khubsurat ho uth thi kyoki sare dost saath the. na bhavishya ki chinta thi, na fikar kisi baat ki,sirf khubsurat nazare the aur baatein thi bahar ki..

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  2. इतनी अच्छी लेखनी और इतने सुंदर कविता कास इसती तरह हम भी लिख और सोच पाते तो हरिवंशराय बच्चन की तरह प्रसिद्धि प्राप्ति कर लेते..................कुछ भी हो आप की लेखनी बेमिशाल है

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  3. वाह भैया ❤️🙏

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