Friday, 26 February 2016

इश्क में माटी सोना कोई मेरे लिए ला दो ना

तुमने कहा था न इश्क में माटी सोना कोई मेरे लिए ला दो ना। मेरा भी वादा था, तो आधा काम मैने कर दिया, किताब को दिल्ली से मंगाकर पूरा भी जल्द हो जाएगा। बस मिलना बाकी है। पर जानते हो ना तुम ये दुनिया है। इश्क सुनते ही क्या-क्या सोचने लगते है। ऐसे में तुमसे किए वादे को बड़ा कर दिया। एक नहीं पांच माटी सोना आर्डर कर दिया। अब ये मत पुछना कि किसके लिए। एक तुम्हारे लिए-एक मेरे लिए। बाकी उनके लिए जो तुम्हारे जैसी ही है। पर हमारे तुम्हारे बीच दोस्ती में वो हो जाती सेंटी है। हो भी क्यों न वो सब, हम दोनों की दोस्ती भी तो ऐंटिक है। तुमसे तो वादा था और इनको सरप्राइज देना था। तो सब के लिए है इश्क में माटी सोना, क्योंकि तुम सब मेरे यार हो ना।
गिरीन्द्र भैया रवीश सर के बाद आपकी लप्रेक पढ़ने के बाद मन बावरा हो रहा, लप्रेक लिखने को। पत्रकारिता करते हुए समय नहीं मिल रहा, पर माटी सोना पढ़ कर लग रहा कि निकालना पड़ेगा समय। रवीश सर की इश्क में शहर होना किसी ने मुझे दी थी तो मैने भी वादा किया था उसे आपकी बुक इश्क में माटी सोना देने का। और विनीत भैया के किताब इश्क कोई न्यूज नहीं के लोकार्पण में साथ होने का। किताब को मेरे शहर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एनडीटीवी एमआई में पढ़ रहे छोटे भाई जैसे प्रिय शिवजी ने। अपनी ही बात करता रहा, आपके लप्रेक की नहीं। सो ये कि जो दिल के करीब हो उसके बारे में क्या कहूं। लव यू लप्रेक।
नोट- किताब मिलने के काफी दिन बाद इस पोस्ट पेस्ट कर रहा हू। तब तक विनीत भैया की किताब इश्क कोई न्यूज नहीं का भी विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पण हो गया। जबकि सोचा था कि हम तुम्हारे साथ वहां मौजूद रहेंगे।
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किताबी मित्र विथ लप्रेक

विश्व पुस्तक मेले में विनीत भैया के इश्क कोई न्यूज नहीं की लांचिंग में किया प्रामिस न निभा पाने के बाद आखिरकार प्रामिस डे पर 11 फरवरी सुदी के जन्मदिन पर अपने मित्र मंडली से बीएचयू कैंपस में मिलना हो गया। वैलेंटाइन डेे पर लप्रेक भेंट करने से अच्छा कुछ भी नहीं। प्रामिस के तहत मुलाकात के दौरान मंगाई गिरीन्द्र भैया की किताब लप्रेक- इश्क में माटी सोना उन्हें दे दी। इसी तरह सुदी के इश्क में माटी सोना, कोई मेरे लिए लादो ना की की मांग पूरी हो गई। वैसे मैं खाली हाथ नहीं लौटा हू। अपने महादेव टीम से मिलना ही सबसे बडा गिफट है मेरे लिए। अप्पी, सिम व अरु तुम से मिलना हर डे से बडा डे है। वैसे किताब के बदले किताब मुझे भी मिली। बनारस टाकिज। थैक्यू सुदी। बाकी कई अन्य किताबो का आदान-प्रदान बाकी है। इसके लिए मुलाकातो के दौर और भी बाकी है। है ना। 
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