Thursday, 12 June 2014

ईश्वर को ऐडवाइस की गुस्ताखी




भगवान शंकर,
     आजकल आपको मंदिर छोड़ शादियों में सज्जा रूप में देखा तो सोचा पत्र लिख कर अवगत करा दूं...कि आप बड़े सरल हो गये है....पहले जहां कई सालो की  तपस्या के बाद आप भक्त के पास आते थे और अब खुद तपस्या करने वाले स्टाईल में भक्तो का अभिनंदन कर रहे है। समारोह में गया तो कुछ काटूर्न लगे थे। कुछ प्लास्टिक के थे, तो कुछ के अन्दर इंसान छुपे थे। आपको देखा तो सोचा कि आप भी उसी स्वागत करने वाले कार्टून की तरह प्लास्टिक के है। पर ध्यान देने पर आपकी आंखो की हिलती पलके और घंटो खड़े होने की थकान ने बता दिया कि आप प्लास्टिक के नही बल्कि जीवात्मा है। जिन कार्यक्रमो में लोग ईश्वर को पूजते हुए अपने कार्यक्रम की शुरूआत व अंत करते है उस कार्यक्रम में आप ऐसे स्थित नजर आये, यह बात समझ नहीं आ रही कि ऐसा क्यों, कही इंसान अपना बदला तो नहीं ले रहा कि पहले वो खड़ा होता था आप के दर्शन के इंतजार में और आज अब आप खड़े हो रहे है उसके स्वागत इंतजार में। मैं भी तीन घंटे तक वहां रहा और आपके और भी अधिक समय तक खड़े होने की सहनशीलता और सरलता को देख रहा था और सोच रहा था कि कही आप गुस्से में अपना तीसरा नेत्र तो नहीं खोलेंगे.....अगर खोलते तो मैं दण्डवत होने के लिए तैयार था......पर ऐसा कुछ नहीं हुआ... कार्यक्रम अंत समय में आप अपने मंच से उतर और शालीनता पूर्वक चले गये। आपको इस तरह देखकर बस यही सोच रहा था कि आपका क्रोध वाला रूप सही है या फिर ये शालीनता वाला...........तुच्छ भक्त हूं पर इंसान भी हूं तो एक गुस्ताखी मैं भी कर रहा हूं आपको एक ऐडवाइस देकर.......ऐडवाइस अंग्रेजी शब्द है....समझते है ना आप......सारी भगवान आप तो अन्र्तयामी है.....हां तो  मै गुस्ताखी कर रहा था ये कि आप इतने शालीन मत बनिये और थोड़ा बहुत क्रोधित हो लिया करिये.....नहीं तो इंसान......आगे आपसे क्या-क्या करवायेगा......पता नहीं.....बाकी तो आप अन्र्तयामी हईये है। 


                                                                                                                      आपका 
                                                                                                  ऐडवाइस देने वाला गुस्ताख पत्रकार