‘दोस्ताना-जिन्दगी रूकती नही..........!
जब
कोई नन्हा फरिश्ता इस धरती पर आता है, तो उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक
उसकी जिन्दगी में कई हमसफर आते है, और चले जाते पर जिन्दगी रूकती नही.
राजेश खन्ना की फिल्म का ये गाना जिन्दगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या
हो किसने जाना.... कुछ इसी पर आधारित है दोस्ती भरी कहानी.
चार
दोस्त थे विवेक, देव, कैलाश, अमन. शहर के मध्य में था देव का घर, जहां
मिलते थे चारो यार. स्कूल व कोंचिग से छुटने के बाद चारों कुछ पल मज़ार
घोड़े शहीद पर जरूर बिताते थे. वहां का एकांत माहौल उन्हें बहुत प्रिय था.
जहां एक ओर था घोड़े शहीद बाबा का मजार तो दूसरी ओर था बहती पतित पावनी मां
गंगा की निर्मल धारा.चारों शहर के गुरूनानक इण्टर कालेज मंे पढ़ते थे.
दसवीं पास करने के बाद जब ग्यारहवीं में प्रवेश लेने की बात आयी तो दोस्ती
निभाने के लिए देव और अमन ने बायोलाॅजी में तथा विवेक व कैलाश ने मैथ में
प्रवेश लिया.
जाड़े का मौसम था. सुबह-सुबह भौतिक विज्ञान की कोचिंग
के लिए चारों साइकिल से जाते थे. हर रोज की तरह उस रोज भी घने कोहरे में वो
लड़की दिखी और चारों के मुहं से एक साथ आवाज आयी. अरे मोटी डायटिंग किया
कर. कैलाश और देव हर शनिवार को संकटमोचन हनुमान जी का दर्शन पूजन करने जाते
थे. कैलाश जल्दी से पूजा करके मंदिर से बाहर निकल आता. देव के मन्दिर से
बाहर आने पर सब उससे पूछते मंदिर में इतनी देर क्या कर रहे थे ? तो देव
कहता दोस्तों की खुशियां मांगने में वक्त लगता है ना. जब कैलाश से पुछते
अबे तुने क्या मांगा जो जल्दी चले आये, तो कैलाश कहता ष्मैंने तो भगवान से
गर्लफ्रेन्ड मांगी है, यार कुवारें थोड़े ही मरना हैष्.
शहर में उन्हें
जो भी देखता, कहता चारों कहीं भी साथ ही दिखते हैं. शहर में उनकी दोस्ती के
चरचे थे. बारहवीं पास करने के बाद आयी ग्रेजुएशन में प्रवेश की बारी. लगता
है उनकी दोस्ती को जमाने की नजर लग गयी. अमन फिजियोथेरेपी करने इलाहाबाद
चला गया। कैलाश और विवेक ने शहर के जी.डी. बिन्नानी कालेज में बी. काम में
और देव ने दुसरे कालेज में बीए में प्रवेश लिया. ऐसे में अब उनका मिलना
जूलना कम हो गया था.
परीक्षा खत्म होने के बाद बीकाम प्रथम वर्ष का
रिजल्ट खराब होने और घरेलू परेशानियों की वजह से कैलाश ने सबसे दूरी बना ली
थी. किसी वजह से कैलाश व देव के बीच दूरियां अधिक हो गयी थी. कैलाश देव के
घर की तरफ से जाता और उससे न मिलता. देव देखता और कहता अच्छा बच्चू ठीक है
मैं भी नही बोलूगां, पर जब क्रिसमस के त्योहार पे विवेक या अमन के घर
मिलोगे तब बताउगां. देव को क्रिसमस का इंतजार था. क्रिसमस आया. विवेक कैलाश
के घर उसे बुलाने के लिए गया. तो कैलाश की बड़ी मां ने विवेक से कहा उसकी
तबीयत ठीक नही है. विवेक ने उनसे कैलाश से मिलने की बात कही तभी कैलाश के
बड़े भाई की आवाज आयी कि वो नही मिल पायेगा. विवेक देव के पास आया और सारी
बात बताई. क्रिसमस में अमन अपने घर मेहमान नवाजी कर रहा था. शाम की क्रिसमस
पार्टी में सब विवेक के घर एकत्रित हुए. क्रिसमस पार्टी बहुत सूनी-सूनी सी
लग रही थी क्योंकि हर वर्ष क्रिसमस पार्टी में कैलाश डांस करके उस पार्टी
में जान फुकंता था लेकिन इस वर्ष बिमारी में उसकी उसकी जान अटकी थी. अगली
सुबह जब देव विवेक के घर जा रहा था तो रास्ते में विवेक मिला, वह बाईक से
एक दुसरे मित्र के साथ कहीं जा रही था. विवेक ने देव से कहा कि अमन को लेकर
चैबे घाट पहुचों। देव ने विवेक से कहा चैबे घाट क्यों तो विवेक ने कहा
छोटू (चारों दोस्तो का एक मित्र) ने बताया कि कैलाश इस दुनिया में नही रहा.
देव के पैरो से तो जैसे जमीन ही खिसक गयी. अफरातफरी में देव किसी तरह अमन
को लेकर चैबे घाट पहुंचा. वहां कैलाश का पार्थिव शरीर जल रहा था. तीनों
दोस्त आपस में लिपट-लिपट कर रोने लगे. होनी को कौन टाल सकता है. चारो को
फिर से एकसाथ मिलना नसीब में नही था, मिले भी तो कैसे.......... श्मशान घाट
पर. जब भी तीनों दोस्त एक साथ नजर मिलाते तो आखों से आंसू छलक पड़ते थे.
हतों बीत गए तब विवेक ने कहा सुनों रोओं मत कैलाश को बुरा लगेगा. हम उसे
याद करके रोएगें तो उसे शांति नही मिलेगी और हम सारी जिंदगी रो के नही
गुजार सकते. जाने वाला लौट के नही आयेगा. समय के साथ सबक स्थिर होने लगा.
तीनों इडियट आज भी मोटी लड़की को देखकर कहते है, ष्अबे ये तो पतली हो
गयीष्. आज भी तीनों शांतिमय वातावरण में कुछ पल बिताने के लिए घोड़े शहीद
मजार के पास जरूर जाते है और गाना गाते है जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां
कल क्या हो किसने जाना...........!
-देव गुप्ता पत्रकार
सिविल लाईन, कचहरी रोड
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